Birsa Munda jayanti Today, kaun the Birsa Munda.

Birsa Munda jayanti 2024 in hindi: janjatiy Gaurav Divas: Bhagwan birsa Munda Amar Kranti Katha 2024: 

आज है राष्ट्रीय नायक बिरसा मुंडा की जयंती! "धरती के सच्चे सपूत, बिरसा मुंडा की जयंती पर दें श्रद्धांजलि!" क्या रहा है उनका योगदान ?



आज भगवान बिरसा मुंडा जी की जयंती 2024 है। इस मौके पर उन्हें देश में लोग अपने अपने तरीके से याद कर रहे हैं। राजनीतिक दलों ने भी अपनी तरफ से श्रद्धांजलि दी! बिरसा मुंडा ने मुंडाओं को जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए बलिदान देने के लिए प्रेरित किया। आइए इस जयंती के अवसर पर जानते हैं बिरसा मुंडा जी का जीवन परिचय, उनके योगदान और उनका नारा क्या था ? क्या रहे हैं उनके संघर्षों की कहानियां ?

Birsa Munda jayanti 2024: आज भगवान बिरसा मुंडा जी का 150 वीं जयंती है। ये जयंती जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाई जाएगी। इस उपलक्ष्य में ग्राम उत्कर्ष अभियान कार्यक्रम भी आयोजित किया जाएगा। आज पूरा देश उन्हें एक राष्ट्रीय नायक के रुप में याद करेगा। आज भी जब कभी झारखण्ड राज्य के इतिहास के बारे में बात करते हैं तो इस नायक पर जरुर ध्यान जाता है। आज सालों बाद भी जल, जंगल और जमीन की बात आते ही उन्हें याद करते हैं। उनका नाम आज भी भारत के इतिहास में वीरता और समाज सेवी के रुप में बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। भारतीय सरकार ने उनके 150 वीं जयंती के मौके पर 150 रुपए के सिक्के जारी करेगी। जिसका वजन 40 ग्राम होगा। आइए जानते हैं बिरसा मुंडा जी का जीवन परिचय.....

Birsa Munda Jivan Parichay:

इतिहास के महानायक बिरसा मुंडा जी का जन्म बिहार में 15 नवम्बर 1875 को उलीहातू गांव-जिला रांची में हुआ था, जो आज झारखण्ड पे पड़ता है। उनकी शिक्षा हिंदू और ईसाई धर्म दोनों ही धर्म से हुई थी। बिरसा को 25 साल में ही आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक शोषण को लेकर काफी ज्ञान अर्जित हो गया था। बिरसा मुंडा का जीवन सिर्फ 25 साल में बिरसा मुंडा ही थे जिनसे अंग्रेजी सत्ता सबसे ज्यादा डरती थी। बिरसा ने अपने छोटे से जीवन में अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों को एकत्रित कर विद्रोह का सूत्र तैयार कर लिया और उन्हें आवाज उठाने की राजनीति सिखाई। बिरसा हमेशा अपनी संस्कृति और धर्म को बचाना और बरकरार रखना चाहते थे। उन्होंने मुंडा परंपरा और सामाजिक संरचना को नया जीवन दिया। दरअसल यह स्थानीयता की सुरक्षा की राजनीतिक लड़ाई का एक रूप था। इसीलिए बिरसा मुंडा को न केवल झारखंड में बल्कि समाज और राष्ट्र के नायक के रूप में देखा जाता है।


उन्होंने अपना। झारखंड और आदिवासी समाज समस्याओं की तरफ धकेला जा रहा है इसे बिरसा मुंडा ने पहले ही भांप लिया था। उन्हें यह लगा कि यह अंग्रेजों का राज का उनके जीवन में प्रवेश नहीं है बल्कि उनकी आजादी और आत्म निर्भरता में बाहरी आक्रमण है। 18वीं एवं 19वीं सदी के दौरान और भी विद्रोह व संघर्ष हो रहे थे। मसलन बाद में महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस और भगत सिंह जैसे नायक भी अंग्रेजी सत्ता से आजादी के लिए लड़ रहे थे। महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो, सुभाष चन्द्र बोस ने जय हिन्द और भगत सिंह ने इंकलाब जिंदाबाद जैसे नारे दिये। लेकिन इन सबकी पृष्ठभूमि तैयार करने वालों में यदि सर्वाधिक महत्वपूर्ण नारा है तो वह बिरसा मुंडा का उलगुलान कहा जा सकता है। मुंडाओं के विद्रोह से अंग्रेजों को तब अपने पांव जमाने का खतरा सबसे ज्यादा दिखा इसलिए उन्हें जेल में रखकर जहर से मारा गया। दरअसल कई नायक संघर्ष के प्रतीक बन जाते हैं। उन्हें वैसे ही प्रतीकों के साथ दिखना स्वभाविक लगता है। झारखंड में बिरसा की बेड़ियों वाली प्रतिमाएं और तस्वीरें ही मिलती है। झारखंड के लोग बेडियों वाली तस्वीरें व प्रतिमाओं को ही अपनी प्रेरणा का स्त्रोत मानते हैं और इतिहास से खुद को जुड़ा महसूस करते हैं। महाश्वेता देवी ने उपन्यास लिखा है तो आजादी के इस महानायक के लिए आदिवासी समुदाय में कई गीत भी है। आदिवासी साहित्य में उलगुलान की ध्वनि आज भी गूंजती है। बिरसा मुंडा जी मुख्यतः दो उलगुलान और द ग्रेट ट्युमूल्ट नामक आंदोलन किए। 


Birsa Munda Slogan / उनका प्रमुख नारा: 

अबुआ दिशुम, अंबुजा राज। 

भगवान बिरसा मुंडा जी ने "अबुआ दिशुम अबुआ राज" (abua disum abua raj) का नारा दिया था। उन्होंने कहा, अबुआ राज एते जना, महारानी राज टुंडू जना अर्थात “रानी का राज्य समाप्त करके, हमारा राज्य स्थापित करें।” जिसका मतलब है हमारा राज्य, हमारा शासन।

Birsa Munda Jivan Prateek: 

आदिवासी भगवान बिरसा मुंडा जी ने जनजातीय संस्कृति, स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक लंबा संघर्ष किया और जनजातीय गौरव का प्रतीक बन गये। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उनके अभूतपूर्व और अतुलनीय योगदान को स्मरण करने के लिए भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर पर प्रति वर्ष "जनजातीय गौरव दिवस" के आयोजन की परंपरा आरंभ की। जिसे मनाते हुए हम उनके किरदार को याद करते हैं। 


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